नागपत्री एक रहस्य(सीजन-2)-पार्ट-33

कदंभ और गुरुदेव का साथ सिर्फ और सिर्फ उस झरने के सामने तक था। जहां से नागपत्री तक पहुंचने के मार्ग की शुरुआत होती है। वह झरना मनोरम पहाड़ियों के बीच एक नदी के पास लगभग सटा हुआ था। उस झरने से गिरने वाला पानी ही उस नदी के लिए उपयुक्त मुख्य स्रोत था। झरने को देखकर कोई भी अनुमान नहीं लगा सकता था, कि इसके भीतर कोई मार्ग होगा, लेकिन यह सत्य है कि उस नदी और झरने में ही वह मार्ग छिपा था जो उसे स्थान तक जाता है, जहां से सफर शुरू होगा......

कदंभ, गुरुदेव और स्वयं चित्रसेन जी उस स्थान तक पहुंचे और अनेकों समझाइसे उन्होंने लक्षणा को दी। लक्षणा ने ध्यान पूर्वक उन तीनों की बातों को सुना। अब बात द्वारा में प्रवेश करने की थी। लेकिन प्रवेश द्वार दिखाई तब देता जब झरना उन्हें आगे बढ़ने की अनुमति देता। शुभ मुहूर्त मात्र एक घड़ी का था। और इस दौरान यदि प्रवेश न किया जाए तो असंभव था, कि अगले कालांतर तक पूर्व ही ऐसा योग बने।

लक्षणा ने आगे बढ़कर स्तुति विचार सब कुछ किया। लेकिन झरने ने अपने स्थान से एक बूंद भी जगह न छोड़ी। तब गुरुदेव ने कहा..... लक्षणा तुम्हारी परीक्षा की शुरुआत यहां से ही होती है। क्यों तुम्हें कोई उपाय नहीं सुझता??क्या तुम्हारे संस्कारों में कोई ऐसी बात निहित नहीं है, जो तुम्हें कोई इशारा प्रदान करती है। यदि है तो शुरुआत करो, क्योंकि अगले कुछ ही क्षणों में इस द्वार के खुलने की संभावना अगले कई कालों तक समाप्त हो जाएगी।

लक्षणा.. मैं, कदंभ या चित्रसेन हम तीनों तुम्हारी कोई सहायता नहीं कर सकते, क्योंकि तुमने अब उस झरने की पवित्र बूंद को स्पर्श कर लिया है। अब इसके पश्चात कोई भी बाहरी शक्ति या कोई अन्य ना तो तुम्हारी सहायता कर सकता है, और ना ही कोई सलाह दे सकता है। अपने आसपास देखो अवश्य तुम्हें कुछ नजर आता होगा। यदि तुमने गौर से कुछ देखा होगा तो उस पर अमल करो, क्योंकि यदि तुम अब चाहो भी तब भी लौट कर खाली हाथ नहीं लौट सकते।

लक्षणा तुम्हें या तो अपनी शक्तियां इसी कुंड में वापस त्यागकर आना होगा या फिर आगे बढ़ जाना होगा। विचार करो लक्षणा,,,, मैं तुम्हारा प्रथम गुरु तुम्हारे प्रथम चरण के लिए तुम्हें आशीर्वाद देता हूं। अचानक लक्षणा के दिमाग में प्रथम गुरु का शब्द गुंजा और उसने अपने आसपास ध्यानपूर्वक देखकर यह सोचने लगी, कि संसार के प्रथम गुरु शिव एवं प्रथम पूज्य श्री गणेश जी हैं। अवश्य ही गुरुवर का संकेत उन दोनों में से किसी एक का है।

लक्षणा ने तभी देखा झरने के पास दाई और एक शिवलिंग के साथ एक गणेश जी की प्रतिमा है। जहां श्री गणेश पूजन की मुद्रा में है। लेकिन उनका कमंडल इस समय खाली है, जो उन्होंने शिवलिंग के ऊपर इस तरह पकड़ा हुआ है, जैसे वह शिवपूजन को तत्पर हो। अचानक किसी कारण उनके कमंडल का जल समाप्त हो गया। इतनी बड़ी नदी कल कल करती एवम इतनी ऊंचाई से गिरने वाला झरना दोनों से ही एक बूंद भी जलराशि ना तो श्री गणेश की प्रतिमा को छूती और ना ही उस शिवलिंग को छु भी पाती।

तब लक्षणा ने गुरुदेव को प्रणाम किया। कदंभ और चित्रसेन को धीमी मुस्कान के साथ प्रणाम की मुद्रा में विदाई दी। क्योंकि वह जानती थी कि इसके आगे का सफर उसे पूर्ण शक्ति के साथ लौटाएगा। या फिर वापस आने का मौका ही ना मिले।

लक्षणा मन में पूर्ण विश्वास के साथ आगे बड़ी। दोनों हाथ की अंजलि में उसने जल लिया और श्री गणेश जी के कमंडल में डालने लगी। उन्हें प्रणाम कर जैसे ही वह जल उस कमंडल में पहुंचा। वह दोगुनी, तिगुनी मात्रा में परिवर्तित हो शिवलिंग पर गिरने लगा। देखते ही देखते उस झरने के मध्य एक रास्ता बन गया।

तब लक्षणा ने भगवान शिव, श्री गणेश और नागमाता का ध्यान कर अपना पहला कदम आगे बढ़ाया। और जैसे ही वह आगे बड़ी। एक विशाल जंगल और पगडंडीनुमा रास्ता उसके बीचो-बीच नजर आने लगा। लेकिन इससे भी ज्यादा आश्चर्य की बात लक्षणा के लिए तब थी, जब उसने एक जैसी ही स्थिति लगातार सात रूपों में देखी। बिल्कुल आईने की तरह यही जंगल, यही पगडंडी भरा रास्ता और यहां तक कि बिल्कुल ठीक  उसी तरह सात अलग-अलग लक्षणा उसे नजर आने लगी। शायद जिसे देख एक समय के लिए कोई भी परेशान हो उठे।

लक्षणा को थोड़े समय तो ऐसा लगा जैसे कोई भ्रम जाल उसके लिए बुना गया हो। लेकिन उसी पल लक्षणा ने देखा कि उन सातों कन्याओं ने एक-दूसरे की ओर देख एक जैसी प्रतिक्रिया दी। तब लक्षणा को याद आया कि जब वह अपनी नानी के घर से नागमाता के मंदिर की ओर चली थी, उस पल उसे कहा भी गया गया था, कि लक्षणा यदि तुम नहीं तो कोई और लक्षणा नियत समय पर किसी और ब्रह्मांड से नागपत्री तक पहुंच ही जाएगी।

इस विशाल ब्रह्मांड में अनेकों शक्ति, अनेकों जीव लोक हैं। और लक्षणा यह भी जान लो कि एक ही समय में समान प्रवृत्ति के भिन्न भिन्न भाग्य के साथ समय और काल की दशाओं के कारण, लेकिन एक ही रूप में हर किसी के सात रूप एक साथ इस सृष्टि में संचालित होते हैं। और वह कहीं ना कहीं एक दूसरे के साथ हो रही घटनाओं को कोसों दूर रहकर भी अनुभव कर पाते हैं।

यही इस ब्रह्मांड का अटल सत्य है, इसलिए यह मान लेना कि जो कर्म हम कर रहे हैं, वह सिर्फ हम ही कर सकते हैं। सरासर झूठ होगा, क्योंकि वास्तव में यदि मन में उठे विचार किसी देवी भावना से उत्पन्न हुए हैं। तब निश्चित तौर पर आपके ना आने जाने पर भी वह आपके ही किसी और रूप से प्रतिपादित किए जा सकते हैं।

कई बार मनुष्य सपने में खुद को ही एक अलग अलग स्थान और परिवेश के साथ देखता है, और यह सोचता है कि यह तो बिल्कुल निरर्थक स्वप्न है। जिसका कोई आधार ही नहीं है। कभी-कभी हमारे आस पास के वातावरण में जो चीज घटित होती है। वह हमें स्वप्न में दिखाई देती है। या कभी-कभी यह एक सत्य भी हो सकता है। या कभी उस समय, जगह से हमारा कुछ संबंध भी हो सकता है, इसलिए वह परिवेश हमें स्वप्न में दिखाई देती हैं।

क्रमशः....

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